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Shraddha tv satsang 24 02 2024 episode 2481 sant rampal ji maharaj live satsang shraddha tv satsang 24 02 2024 episode 2481 sant rampal ji maharaj live satsang by spiritual leader saint rampal ji facebook
Shraddha TV Satsang 24-02-2024 || Episode: 2481 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang | Shraddha TV Satsang 24-02-2024 || Episode
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Sadhna TV Satsang 04-12-2023 || Episode: 2789 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang | Sadhna TV Satsang 04-12-2023 || Episode: 2789 || Sant Rampal Ji Maharaj Live Satsang | By Spiritual Leader Saint Rampal Ji | पवित्र श्रीमद्भागवत गीता पवित्र चारों वेद, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र बाइबिल, पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब, पवित्र, कबीर साहेब की वाणी में छुपे हुए गूढ़ रहस्य अर्थात तत्व को जानने के लिए कृपया अवश्य सुनिए, जगतगुरु तत्वदर्शी, संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन। संबंध जब आटा लेकर गया लेकिन पूछा पुत्र कहाँ है? कि ने पकड़ लिया। जल्दी जा वापस लड़के ने पहचान लेंगे और गुरु जी की बेइज्जती होएगी तो ऐसे करना लड़के का सिर काट देना। लाला जी फिर रखेगा नहीं उस लड़के को फेंक देगा कहीं बाहर। और ऐसे कर लें तो फिर तो उसने स्कीम बनाकर ऐसे किया। एक लेकर के तलवार संबंध वापस आ गया और कहा बेटा एक बार तू दो बात बतला ले। फिर तू तू पकड़ा जाएगा। और तुझे हो सकता है सजा दे दे और मैं तेरे एक कान में आवश्यक बात कहूँगा तू एक बारी सुराख में से सिर बाहर निकाल ले। अब सेव ने कहा लाला जी बाहर मेरे पिताजी खड़े हैं। दो बात बतलानी है हमने। एक बार मेरा पैर ढीला कर दे। सेठ बोला तू भाग जाएगा ना इस रस्सी ने कट बांधे पर थोड़ा ढीला कर दे मैं सिर-सिर बाहर निकाल लूँ। मेरे हाथ भी बांध दे। अब सेठ ने सोचा रे दो से तीन शेर आटा ले रहे हैं के खाया है बेचारे ने फिर भी ढीला कर दिया। और उद्देश्य ये था कि कल इनको राजा के पास पेश करूँगा, सजा दिलाऊंगा इनके गुरु जी को भी जिनको भी। ये और आगे करेंगे चोरी की जगह। तो ज्यों ही उसने सिर बाहर निकाला। अब पिता था हाथ पीछे का पीछे रह गया। उठा नहीं के मार दूँ लड़के के काट दूँ सर ने तब सेव ने कहा पिताजी तलवार ले आ। मेरा सिर काट दे। और सिर काट लेगा ना फिर यूँ कित रखेगा इस लाश ने बाहर फेंक देगा फिर पचानवे ना आऊंगा मैं। और नेता गुरूजी की बेइज्जती करेंगे सवेरे ये। और तू मेरा बाप है तो मेरा सिर काट ले नहीं तू मेरा बाप नहीं है। अब बच्चे से प्रेरणा पा के उसमें फिर current-सा आ गया और एकदम लड़के का सिर काट दिया। और चोटी से पकड़ कर उस सिर को घर ले आया शीश को अब लाला जी ने देख्या है तो क़त्ल हो गया तेरा यूँ दो का मुकदमा और लागेगा। उसने फटाफट उस शव को घसीट के और दूर गिराया पजावे में खंडर से होते थे बाहर। कुम्हारा के खोया करते पजावे उनमें पटक आया। और आ के अपनी ईंट उल्टी ऐसे लगा के मकान अरली पिलाप के हमेशा कर दिया जैसे रेत-रात छिड़क के कुछ होया कोणी था। अब जब सम्मन वापस गया तो नेकी ने पूछा अब तू वापस जा। ये सिर ने यहाँ रख जा। अलमारी में और बनिया इस लाश को अपने घर नहीं रखेगा कहीं पटिका होगा बाहर। उसके चिन्हों के साथ-साथ चला जाना। और उस लाश ने उठा लिया। कहीं बाहर कोई पता लग गया रोला माचिस शोर मचेगा किसी का तो खोज हो जाए किसका बालक है। ऐसा ही किया। अब देख्या जब समन वापिस गया तो उसके निशान पड़ गए घसीट के ले गए लाला जी। उनके साथ-सा उस लड़के के शव को भी उठा लेया। नीचे गेर दिया झोपड़ी में। बोरी पल्ली डाल के ढक दिया। और सोचा कि गुरुदेव को नहीं बताना है। नहीं तो रोटी नहीं खावेंगे। और भूखे हैं कल के तो फिर क्या किया? खाना बना दिया नेकी ने और समन बोला कि हम पानी मत लाइए ना गुरु जी को पता लग जाएगा। अब उन्होंने सारा भोजन बना के तीन पात्रों में डाल दिया। और कहा महाराज जी भोजन खा लो। वक्त से बना दिया कि चले जाएंगे फिर रोएंगे बैठ के उन्होंने तीन पात्रों में डाल दिया परमात्मा बोले भाई इसने छह स्थानों पे कर दे सारे भोजन ने। अब कहने लगा महाराज जी आप खा लो हम तो बाद में पा लेंगे। अपना इकट्ठे बैठकर खाएंगे सारे। तीन तो परमात्मा कबीर जी और दो और साथ में तीन वर तीन व सदस्य घर के छह स्थानों पे पुरुषवा लिया। सारे भोजन को और कहा आ जाओ बैठ लो भाई भोजन खाओ। अब उनको ये चिंता होगी गुरु जी पूछेंगे इस लड़का की इच्छा पूछेंगे तो कह देंगे कि हमारा ज्योत किधर बाहर है। तो वो तो अंतर्यामी थे। जब सारे बैठ के एक स्थान खाली था। तब परमात्मा ने कहा आओ सेव जीम लो। ये प्रसाद प्रेम बेटा सिर कटा करे चोरों के साधों के नतक से। कहते हैं सेव धड़ पे शीश चढ़ा। और बैठा पंगत माँ और नहीं निशानी गर्दन के यो से वोक ना बोलो सतगुरु देव। कहते हैं सेव के सिर पे वो शीश न्यू का न्यू रखा गया और वहां आ के बैठ गया पंगत में खाना खाने के लिए उसके निशान भी नहीं था किधर गर्दन का यो कटया था अपना वो माता-पिता न्यू हटा-हटा के देखें कि ओए सेव है गौर कोई सा भीतर जा के देख्या वो खाली पड़ी बोरी तो पुण्य आत्माओं उसके बाद परमात्मा ने उनके ठाठ कर दिए। कहते हैं और एक करोड़ कर्म जल जाए तुम्हारे तो पुण्य आत्माओं इस प्रकार उस परमात्मा आपके साथ है इतना समर्थ है, अपनी भक्ति करो कल्याण करवाओ। परमपिता परमात्मा पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी की असीम कृपा से आज हम सबको ये सत्संग सुनने को मिला बहुत ही पुण्य कर्मी प्राणी को मनुष्य शरीर प्राप्त होता है। उससे भी पुन कर्मी प्राणी वो है जो सत्संग प्राप्त कर लेता है। पुण्य आत्माओं परमात्मा की आप विशेष परी आत्मा हो जो सत्संग सुन रहे हैं। सत्संग में आने से हमें ज्ञान होता है कि हमारा जन्म हुआ किस लिए? हमारा जन्म हुआ तो मृत्यु क्यों हो रही है? हम सारा जीवन जिन भी वस्तुओं को कलेक्ट करने में लगा देते हैं. कोई मकान बनाया है, कहीं कोई कार खरीदी है, किते कोई मोटरसाइकिल ली है? अन्य बहुत सा सामान हम इकट्ठा करते हैं. और फिर हम तुरंत मर जाते हैं, मृत्यु हो जाती है. हम सारा जीवन यही सोचते रहते हैं कि ये घर मेरा है, ये परिवार मेरा है. ये पुत्र मेरा है या बेटी मेरी है, ये कार मेरी है या कोठी मेरी है. मृत्यु के तुरंत बाद इस शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. और जीव का पता नहीं वो कहाँ चला जाता है। तो ये हमारा कहाँ था? ये हमारा कैसे हुआ? प्रत्येक प्राणी को ये ज्ञान है. कि मृत्यु बहुत बुरी चीज है. और सभी मृत्यु से डरते हैं. और मृत्यु कम्पलसरी. तो ये ऐसा क्यों हो रहा हमारे साथ? कि हम मृत्यु से डरते हैं. अपने शरीर की रक्षा के लिए हम अपने इस प्रॉपर्टी को भी बेच करके ट्रीटमेंट पे लगाना उचित समझते हैं ताकि हमारा जीवन बना रहे. और सब कुछ करने के उपरांत भी एक दिन मृत्यु होनी ही होनी है. और ये मृत्यु हमें बिल्कुल खटकती है, कतई नहीं अच्छी लगती। इसका कारण क्या है? कभी माइंड पर थोड़ा बहुत हम विचार करने की सोचते, वजन डालते हैं तो कोई विकल्प नजर नहीं आता था. क्योंकि हम देखा करते थे कि जिनको हम भगवान मानते हैं वो भी मरे। श्री राम, श्री कृष्ण और उनकी मृत्यु देखी जाए तो आम व्यक्ति से भी गलत ढंग से हुई। भगवान श्री रामचंद्र जी ने सरयू नदी में जल समाधि ली जीवित। भगवान श्री कृष्ण जी के पैर में भी तीर मार के उनका वध हुआ। तो अब हम सोचने पे विवश हो चुके कि ये ऐसा क्यों हो रहा है? पहले तो हम इतना वजन नहीं देते थे क्योंकि हम सोच लेते थे मृत्यु होगी। लेकिन अभी नहीं. कोई बीस वर्ष का है, कोई तीस वर्ष का है, वह सोचता भी थोड़े ही मरना, मेरी तो साठ-सत्तर अस्सी-नब्बे वर्ष की उम्र बताते हैं। और जो अस्सी-नब्बे तक पहुँच चुके हैं। उनसे पूछ कर देख लो। वो भी नहीं चाहते मृत्यु हो। कहते हैं अभी तो और दस-बीस वर्ष हैं सौ वर्ष तो जीते ही हैं और कभी भी मृत्यु हो जाती है तो हमारा जो estimate था वो गलत हो गया तो हमारा estimate एक जीव का estimate है approximation है। तो इसके लिए हमने परमेश्वर के द्वारा दिए गए उस ज्ञान पर चलना पड़ेगा। तभी हम सफल होंगे। अब हम मृत्यु को बिल्कुल पसंद नहीं करते, मृत्यु हो रही है. इसका कारण क्या है? क्योंकि हम ऐसे स्थान से आए हुए हैं. जहाँ मृत्यु नहीं होती थी. और वृद्धावस्था भी वहाँ नहीं थी. प्राणी मनुष्य जीवन प्राप्त करके बुढ़ापा पसंद नहीं करता. और कंपलसरी मृत्यु पसंद नहीं करता, compulsory. होएगी तो ये वहाँ नहीं थी जहाँ से हम आ गए अपनी गलती करके. अब चाहे कोई सत्तर-अस्सी साल उसका हो गया है वो भी न्यू सोचे मैं युवा दिखाई दूँ। और किसी अच्छा कोई सेठ है या कोई राजनेता है, पैसे का ब्यौत है विदेशों में जाकर के foreign में जा के और पूरी अपनी स्किन वो कराते हैं चेहरे की दोबारा उसकी। बढ़िया मेकअप बनवा के आवे, सर्जरी करवा के एक और युवा दिखाई दूँ कितने दिन हो गया सर्जरी कामयाब। फिर कभी गोली से मारा जाए, accident दुर्घटना मर जाता है वहां रह गई मैं कपड़ी बनाई। तो जो हमने इस मिट्टी से लाभ लेना था। उसका हमने पता नहीं चला इसको कैसे सदुपयोग करें। हम ऐसे लोक में रहते थे जहाँ वृद्ध अवस्था नहीं आती थी. सदा युवा रहते थे. और मृत्यु नहीं होती थी. और जब तक हम उस स्थान पर नहीं जा लेंगे तब तक यूँ रोग कटे नहीं. या समस्या समाधान हो नहीं सकता. उसके लिए जानकारियां सत्संग में बताई जाती है। क्या बताया जाता है? तू कौन कहाँ से आन फंदा देखो आगे क्यों जलता है तू कौन कहाँ से आण फसा यहाँ आगे क्यों जलता चल धीर करूँ अब गत ना गिरी जाँच चोर सुहागम अजब डूरता क्या बताते हैं कि तू कहाँ से आ के फँस गया और यहाँ विरानी आग में जल रहा है और परमात्मा कह रहे हैं कि चल तुझे वहाँ ले चलता हूँ उस लोक में चलो जहाँ जाने के बाद फिर कभी मृत्यु नहीं होगी। वो सतलोक है. सतलोक से हम सभी आए हुए हैं। और यहाँ हम कैसे आ गए? हमसे कौन-सी भूल बनी थी? ये भी परमात्मा ने ही आकर हमें याद दिलाई है. क्योंकि हम जो गलती वहां कर चुके थे हम उसको गलती नहीं मान रहे थे. जो हम सतलोक में गलती किया करते थे. हमने उस गलती को गलती नहीं माना था. इसलिए हमें आज तक भी ये महसूस नहीं हुआ था कि हमने कौन सी गलती कर दी जो यहाँ दुर्गति हो रही है. तो ये जानकारी आपको सत्संग में बताई जाती है, दी जाती है. और ये ज्ञान जो आपको सुनाया जा रहा है, ये परमेश्वर ने स्वयं आकर ही बताया है. पुण्य आत्माओं ये अमर कथा जो आपको सुनाई जा रही है, ये सत्यनारायण कथा है. और हमने जो कथाएं सुन रखी हैं वो सत्यनारायण कथा नहीं थी सत्यनारायण का अर्थ होता है सत्यनारायण सत्य माने अविनाशी जिसका नाश कभी ना हो सच्चा भगवान, सच्चा साहेब हम सच साहिब बोलते हैं उसको. और पहले उसको सत्यनारायण कहा करते थे. सत्यनारायण. नारायण का क्या अर्थ होता है? कि जल के ऊपर विराजमान होने वाला परमात्मा वो परमात्मा नारायण जो है ये कबीर देव है, कबीर साहिब है। जो जल के ऊपर आ के विराजमान होता है कमल के फूल पर. ये सत्यनारायण है, ये अविनाशी परमात्मा है, हम इसको सत्स साहब बोलते हैं, सत साहिब जैसे साहब कहते हैं साहब। ये फलाना साहब। ये मंत्री साहब, प्रधानमंत्री साहब तो हम उसको बोलने में थोड़ा साहिब बोल देते हैं, बोलने में सुथरा सा लग गया साहिब। नहीं तो ये सत साहब कहो, सत साहिब। सत साहब एक ही बात तो सत्य साहिब यानी सत्यनारायण भगवान, सत्यनारायण सत्य माने सच्चा अविनाशी तो हम जिनको सत्यनारायण मानकर उनकी कथा सुनते और सुनाते थे. वो सत्यनारायण नहीं थे वे अविनाशी नहीं थे जैसे विष्णु जी, श्री ब्रह्मा जी, श्री शिव जी ये नाशवान थे. तो हमने अभी तक ना तो सत्यनारायण का ज्ञान था और ना ही सतलोक का गीता जी अध्याय नंबर अठारह के श्लोक नंबर बासठ में कहा कि अर्जुन तू सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा उसकी कृपा से ही तू परम शांति को और सनातन परमधाम को प्राप्त होगा. जब तक जन्म मृत्यु है जीव को शांति नहीं हो सकती. क्योंकि इस पृथ्वी पर आप किसी भी जीव को देख लो किसी को भी चैन नहीं है। हम राजा लोगों को ये समझते थे ये बड़े सुखी है। इन जैसा दुखी धरती पे इंसान नहीं। ये सत्य कर मान लेना। अब इनके बस की बात नहीं है। ये राज ना करें क्योंकि इनके भाग में लिख रखे हैं इसकी इनकी किस्मत है। पिछले पुण्य हैं। उन पुनों के प्रति फल में उनको ये समस्या मिली हुई है। देखो एक छोटे से परिवार का एक मुखिया होता है। जिसमें पांच-सात सदस्य होते हैं। उनकी व्यवस्था में वो कितना दुःख रहता है। कोई बीमार हो गया, किसी के कपड़े लाने हैं, किसी की फीस भरनी है। क्या विवाह के योग्य होगे, विवाह ना हुआ तो चिंता होगी तो फिर आगे बनवाने और समस्या पुत्र ना हुए उनके तो समस्या। तो कहने का भाव ये है वो एक ही छोटे से परिवार के पोषण में रात को भी सपने में भी दुखी रहता है। और राजा तो एक बहुत बढ़िया क्षेत्र का मुखिया बन जाता है, पिता बन जाता है। राजा प्रजा का पिता होता है। और उसको कितनी चिंता रहती है, कहीं फ्लड आ गया है, तो राजा को धक् देसी होगी कि त दुर्घटना होगी तो उसी को समस्या होती है, कहीं कुछ बनाना है, कहीं कोई अशांति फैल गई है। कोई एमएलए खिसकन की सोच रहा है तो नींद आवे नी तो यहाँ कहते हैं परमात्मा के यहाँ शांति ने किसी प्राणी को निर्धन तो सोचता है धनवान सुखी। धनवान कि राजा सुखी राजा सोचता है कि भई स्वर्ग में बतावें सुख तो वहाँ होगा। ये सत्य मान लेना अब। इन राजा लोगों को सुख नाम की चीज नहीं है। सपने में भी नहीं सुख इनको. और फिर ये सोचते हैं स्वर्ग में सुख है जिन बकवादों को हम सुख मानते हैं वो सुख नहीं है। परमात्मा कहते हैं झूठे सुख को सुख कहे ये मान रहा मनमोद. ये शक्ल जबीना काल का, कुछ मुख में कुछ कोट. बेटा जाया खुशी हुई, बहुत बजाये थाल. ये तो आना-जाना लगा हुआ है जो कीड़ी का नाल. अब राजा सोचते हैं कि स्वर्ग में सुख होगा. अब स्वर्ग के देवता, उनकी दुर्गति, उनके इतिहास पढ़कर देखो पुराणों में. कभी असुर और देवताओं का और सोलह सुरों का युद्ध हो गया, राक्षसों का कभी देवता हार गए, कभी असुर हार गए। इंद्र जो स्वर्ग का राजा होता है, गद्दी छोड़ भाग गया, असुरों ने कब्ज़ा कर लिया स्वर्ग पर। वो कहीं जंगल में भूखा-प्यासा भटक रहा है। और इंद्र सोचता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश सुखी होंगे। ये तीन लोक के एक-एक विभागीय मंत्री हैं. अब ये ब्रह्मा, विष्णु, महेश कितने सुखी हैं? श्री विष्णु जी के अवतार, श्री कृष्ण जी, श्री रामचंद्र जी श्री राम चंद्र के रूप में राजा दशरथ के घर जन्म जब श्री विष्णु जी का हुआ युवा हुए, युवा होते विवाह हुआ, विवाह होते ही वनवास हुआ। बनवास से सीता का हरण हुआ। यानी उसकी पत्नी का रावण उठा ले गया और फिर रावण के साथ युद्ध हुआ। पुण्यात्माओं करोड़ों व्यक्ति मारे गए वहाँ पर तब सीता की वापसी हुई। वापसी आने पर बड़ी खुशी बनाई नगरी में दीप जलाए गए घी के सीता के वापस श्री राम के वापस आने पर सीता लौटा लाने पर. और कुछ दिनों के बाद सीता जी का निष्कासन कर दिया श्री रामचंद्र जी ने स्वयं ही किस बात पर के एक धोबी ने व्यंग कस दिया वो अपनी पत्नी को वो धमका रहा था। रात्रि के समय आपस में कहासुनी होने से उस धोबी की पत्नी घर से बाहर चली गई थी कहीं अपने रिश्तेदारी में। फिर वो वापस लेकर आया तो उसको धमका रहा था कि मैं तुझे घर नहीं रखूँगा तू। तीन दिन कहाँ रही? मैं दशरथ के पुत्र जैसा नहीं हूँ जो वहां पर बारह वर्ष तक रावण के पास रही उसको फिर घर ले आया। उधर से श्री रामचंद्र जी राजा थे अयोध्या के पहले राजा लोग अपनी प्रजा के दुख सुखों को स्वयं ही जाना करते थे। रात्रि के अंदर वेश बदलकर घुमा करते थे। ये बात जब देखा कि किस घर में के आवाज आ रही है? वहाँ खड़ा होकर सुना तब उसने सुनने को मिला कि मैं उस राजा दशरथ के पुत्र रामचंद्र जैसा नहीं हूँ जो रावण के पास उसकी पत्नी रही और उसको घर में रखे हुए हैं तो सुबह निकल जाना यहाँ से. इस बात को सुनकर ही श्री रामचंद्र जी ने सीता जी को निष्कासित कर दिया निकाल दिया घर से. नगरी के लोग मेरे ऊपर व्यंग कस रहे हैं और मैं ये बात नहीं सुन सकता। पुण्य आत्माओं जब सीता जी को रामचंद्र जी लाने लगे, रावण का वध करके लंका का राज्य विभिक्ष्ण को देखे तब श्री रामचंद्र जी ने कहा था कि मैं तेरी परीक्षा लूँगा। और यदि परीक्षा में सफल होगी तो मैं ले चलूँगा नहीं तो नहीं ले चलूँगा। मैं तुझे अग्नि में जलाऊंगा. यदि तू अग्नि में जल गई तो समझो कि तू कलंकित थी. तू रावण को समर्पित हो चुकी थी. और यदि अग्नि में तू नहीं जली तो मैं निष्कलंक जानूँगा तब तुझे ले चलूँगा. ऐसा ही किया गया. सीता को अग्नि में बैठा दिया. और हजारों की संख्या में दर्शक थे। सीता जी नहीं जली। और सब ने कहा कि भगवन निष्कलंक है। my निष्कलंक है। और इतनी कठोर परीक्षा लेकर के वापिस अपने घर लाया था। और फिर एक व्यक्ति के कहने से श्री रामचंद्र जी ने उसको निकाल दिया। अपनी पत्नी को। तो कहाँ गई वो उसका अपना जजमेंट? तो ऐसे ही ये राजा के योग्य भी नहीं थे ये लोग और हम इनको भगवान मान रहे थे। एक गर्भवती औरत को अपनी को और घर से बाहर निकाल देता है। कहीं मरो, कहीं जाओ, कोई बात थी या फिर अ परीक्षा लेने की क्या जरूरत थी? और क्यों इतनी दुनिया मरवाई फिर छोड़ दी रावण के पास ही रहती हो। पुण्य आत्माओं यहाँ का राजा काल भगवान है। और ये नहीं चाहता कि यहाँ के प्राणियों को परमात्मा का पता लग जाए। जिस कारण से इसने इनको भगवान सिद्ध करवा रखा था अपने नकली दूतों के माध्यम से। और फिर क्या होता है लास्ट में श्री रामचंद्र जी ने अश्वमेघ यज्ञ घोड़ा छोड़ दिया तो पूरी पृथ्वी पर शासन प्राप्त करने के लिए कि इस घोड़े को जो पकड़ेगा वो युद्ध करे मेरे साथ वो घोड़ा उसी के पुत्रों ने जो सीता जी ने बाहर जा के जन्म दिया था ऋषि वाल्मीकि कुटिया में एक पुत्र गर्भ में था दूसरा फिर वाल्मीकि जी की मिस अंडरस्टैंडिंग के कारण एक घास से यानी कुसा से या घास होती है इससे एक लड़का बनाया था ये अलग कहानी है फिर बताएंगे तो लव और कुष्ठ नाम से प्रसिद्ध हुए लौ तो सीता के गर्भ से जन्म हुआ था और कुश को बाल्मीकि जी ने अपनी भक्ति शक्ति से उसको बनाया था. लव और कुश युवा थे। उन्होंने वो श्री रामचंद्र जी का घोड़ा पकड़ लिया। फिर उनका पिता पुत्रों का युद्ध हुआ तो दोनों ने छक्के छुड़ा दिए राम के. और सीता जी फिर भी उनके हाथ नहीं आई और वो पृथ्वी के अंदर समा गई. और श्री रामचंद्र जी ने आकर के सरयू नदी के अंदर अयोदा के साथ से बह रही है. एक सरयू दरिया. उसमें जल समाधि ले ली. इसी दुःख में. अब श्री कृष्ण जी का इतिहास देख लो श्री विष्णु जी अवतार श्री कृष्ण जी, श्री रामचंद्र जी के जीवन वाला भोग-भोग के वो प्राणी श्री कृष्ण रूप में फिर जन्म हुआ, सारा जीवन दुखी रहा श्री कृष्ण, सारा जीवन जेल में जन्म हुआ, मात-पिता कैद में कभी मामा शत्रु हो गया, कभी पुतना मारने जा रही है, कभी कैसी, कभी चाण और शत्रु हो गया. ज़रा सिंग लड़ने को आ रहा है कभी शिशुपाल से युद्ध हो रहा है कहा सुनी हो रही है और कभी फिर काल्यवन आ रहा है. इस दुःख में श्री कृष्ण जी ने मथुरा का त्याग कर दिया। और ऐसे स्थान पर रहने लगे जहाँ कोई ना पहुँच सके. समझदार व्यक्ति यही सोचते हैं राड से बाढ़ अच्छी होती है. झगड़े से बचाव अच्छा होता है. श्री कृष्ण जी उन सब को भी मार सकते थे क्योंकि वो त्रिलोक के मैं एक विभागीय मंत्री है, एक विशेष शक्ति होती है प्राणी में. वो उनके अंदर शक्ति थी. लेकिन यही सोचा था कि किस-किस ने मारूं या तो सबकी बुद्धि भ्रष्ट तो श्री कृष्ण जी ने द्वारका बनाई समुंदर के बीच में एक टापू था जिसका केवल एक गेट था द्वार ईका एक द्वार की नगरी और ये सोच कर के वहां यदि इतनी दूर पहले तो कोई आवेगा नहीं ऐसे स्थान पर जा रहे हैं हम और वहां कोई आ भीगा युद्ध करने तो हम एक ही तरफ से उसका सामना कर सकते हैं इसलिए एक गेट था उसका बाकी तीन समुंदर था तीन तरफ। तो वहाँ श्री कृष्ण जी चले गए। अपना सारा ही जीवन वहां व्यतीत किया। यहाँ तो ज्यादा से ज्यादा अठारह साल के बीस वर्ष के तक यहाँ रहे थे द्वारका में। और बाकी फिर लगभग दो सौ वर्ष तक जिए थे श्री कृष्ण जी और बाकी का समय द्वारका में व्यतीत किया था उन्होंने। तो अब ये जो लोग अनजान संत, ऋषि ये गुरु नकली हमें भ्रमित करते कि द्वारका का उस गोवर्धन पर की परिक्रमा करनी चाहिए। और वृंदावन अवश्य जाना चाहिए। मथुरा में अवश्य जाना चाहिए। वहां हमारे भगवान ने लीला की है। उनके चरण कमल टिके हैं। वहां घूमा करते थे, स्नान किया करते थे। अरे श्री कृष्ण जी यहाँ ते बीस वर्ष रहे थे इस मथुरा में। बाकी एक सौ अस्सी साल तो वहां रहे हैं द्वारका में। और वहां का नामोनिशान मिट गया उस द्वारका को। इसलिए वहां खत्म की द्वारका समुद्र में drub drub गई श्री कृष्ण जी की मृत्यु के बाद और यादों का विनाश हो गया था आपस में लड़ के मर गए थे। और जो बाकी शेष औरतें बची थी उनको अर्जुन ले आया था सब खाली हो गई थी द्वारका। उसके बाद वो समुंद्र ने डुबो दी थी अंदर चली गई। कारण यही था कि भगवान ने सोचा कि यहाँ आएंगे फिर ये धक्के खाने द्वारका में इतनी दूर। इसलिए उसका नामोनिशान मिटवा दिया था। अगर आज द्वारका होती तो ये नकली कहते द्वारका में भगवान रहे थे। वहाँ जाया करो। वहाँ बहुत पुण्य होता है। उस द्वारका में तो सत्यानाश होया था सारे या दो कट के मर गए थे वहां पर। आज भी जाते हैं वहां। बहुत से श्रद्धालु तो कहने का भाव ये है कि जब तक आत्मज्ञान बिना नर भटके इस तत्व ज्ञान बिना नर भटके, कदे मथुरा कदे काशी फिर श्री कृष्ण जी का फिर कैसे अंत हुआ? श्री कृष्ण जी के सामने पूरा यादव कुल आपस में लड़ के मर गया पोते, परपोते रिश्तेदार सब आपस में कट के मर गए। और वो सारा सांग देख के, वो सारा देखकर जब श्री कृष्ण जी की मृत्यु हुई. एक परिवार के सामने एक आधे की मृत्यु हो जाती है, उसका कलेजा फट जाता है, रो-रो के पागल हो जाता है इंसान. तो पुण्य आत्माओं आज तक हमें सत्यनारायण कथा नहीं मिली थी. सत्य कथा है सत्यनारायण का अर्थ है सच्चा भगवान और सच्चे भगवान की सच्ची कहानी सच्ची कथाएँ तो प्रश्न चल रहा है कि परमात्मा ने बताया कि तुम जब तक जन्म और मृत्यु के अंदर हो, सुख नहीं हो सकता, शांति नहीं हो सकती. अब इंद्र सोचता है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश सुखी होंगे. अब इन ब्रह्मा, विष्णु, महेश की आप देख रहे हो श्री राम की, श्री विष्णु जी की, श्री कृष्ण जी की कैसे दुर्गति हुई? श्री कृष्ण यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश सोचते हैं कि परमात्मा कोई और है. हम सुखी नहीं हैं। अब प्रसंग चल रहा है कि सत्यनारायण कथा जो है। सत्यनारायण का अर्थ है अविनाशी परमात्मा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये सत्यनारायण नहीं है। श्री विष्णु जी को हम सत्यनारायण जान करके इसकी कथा सुना और सुनाया करते थे, सुनते और सुनाते थे। आपको दिखाते हैं कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी ये सत्यनारायण नहीं थे। अविनाशी भगवान नहीं थे। ये नाशवान थे। इनकी जन्म मृत्यु होती थी। एक झलक दिखाएंगे आपको। समझदार को संकेत बहुत होता है। देखिएगा। श्री देवी भागवत श्रीमद् देवी भागवत गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है ये। इसके संपादक हैं हनुमान प्रसाद पोदार चिमनलाल गोस्वामी। ये कहाँ से मुद्रित है? प्रकाशक एवं मुद्रक है, गीता प्रेस गोरखपुर, गोविंद भवन कार्यालय, कोलकाता का संस्थान। इसका एक थोड़ी सी झलक दिखाते हैं, एक सौ तेईस पृष्ठ, तीसरा स्कंद। एक सौ तेईस पृष्ठ है। ये तीसरा स्कन्द भगवान विष्णु श्री विष्णु जी अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए बता रहे हैं तुम शुद्ध स्वरूपा हो ये सारा संसार तुम्हीं से उद्भाषित हो रहा है मैं ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी कृपा से विद्यमान हैं हमारा आविर्भाव और तिरोभाव हुआ करता है. अह आविर्भाव माने जन्म और तिरोभाव माने मृत्यु. हमारा तो और मृत्यु हुआ करता है। केवल तुम ही हो जगत जननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो। ये प्रकृति दुर्गा को कहते हैं, ये भी ध्यान रखना। जिस गीता जी में काम आवेगा आपके भगवान शंकर बोले देवी यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारी बालक हुए। आह फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ? अर्थात मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो। ये स्पष्ट हो गया शंकर भगवान कहता है कि मैं जब ब्रह्मा भी आपसे उत्पन्न हुआ तो उसके बाद मेरी उत्पत्ति हुई कि मैं आपका बच्चा नहीं हुआ? मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो शिव संपूर्ण संसार की सृष्टि करने में तुम बड़ी चतुर हो. ये शिवें उसी को बोलते हैं दुर्गा को. इस संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ है। उन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम यानी ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर, रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव जी, शंकर भगवान। नियमानुसार कार्य में तत्पर रहते हैं। अब इस पवित्र पुराण में इस श्रीमद् देवी भागवत पवित्र पुराण ने चार concept कर दिए। एक तो ये कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश नासवान है इनकी जन्म-मृत्यु होती है, ये सत्यनारायण नहीं है. और दूसरा ये हो गया कि दुर्गा इनकी माता तीनों की. तीसरा ये हो गया कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमग्गुण शिव जी. और चौथा कंसेप्ट ये क्लियर हो गया. कि ये केवल नियमित कार्य ही कर सकते हैं. यानी जिसके भाग्य में जो कुछ लिखा है. उतना ही दे सकते हैं, दुख है तो दुख ही देंगे ये. उसमें परिवर्तन नहीं कर पाओगे. और है आपके भाग में तो उसको भी यदि आप इनकी भक्ति करते हो तो निर्बाद दिला देंगे. लेकिन ये कर्म आपके कर्म में दुख है तो उसको परिवर्तन नहीं कर सकते ये किसी भी प्रकार के पाप कर्म दंड का नाश नहीं कर सकते. ना संचित कर्म को नाश कर सकते और ना ही इस प्रारब्ध के कर्म का नाश कर सकते. और संचित जो हम कर रहे हैं, जो क्रियावान है ये भी उसको नहीं बदल सकते जैसे महाभारत का युद्ध हुआ। श्री कृष्ण जी ने बहुत कोशिश की यानी विष्णु जी ने कि ये युद्ध ना हो। उनकी सौ-सौ प्रयत्न करने पर भी युद्ध होकर ही रहा। तो जो क्रियावान कर्म थे वह भी ना बचे। उनको भी नहीं चेंज कर सके, नींद कितना अनर्थ हुआ। हैं करोड़ों व्यक्ति मारे गए, वो सारा पाप पांडवों के सिर पर रखा गया। और प्रारब्ध के कर्म को ये अपना भी नहीं काट सकते प्रांत तो दूसरों का कैसे काटेंगे? जैसे श्री राम रूप में श्री रामचंद्र जी ने सुग्रीव के भाई बाली को मारा था। धोखा देकर वृक्ष की ओठ ले के तीर मारया था. उसका भी बदला देना पड़ा. वो भी कर्म दंड भोगना पड़ा. उसके प्रारब्ध में लिखा गया वो क्रम श्री कृष्ण रूप में जो बाली वाली आत्मा थी वो तो एक शिकारी बना. और श्री राम वाली आत्मा श्री कृष्ण बने. और श्री कृष्ण जी का वध. विषाक्त तीर यानी जहर बुझे हुए तीर मार के उस एक शिकारी ने उनकी उनका वध किया। तो उनका अपना भी कर्म भोगना पड़ा उन भगवानों को। जिनकी हम गुण गाया करते थे जिनको सर्वशक्तिमान बताया करते थे। तो वो भी सर्वशक्तिमान नहीं पाए। ये अविनाशी भी नहीं पाए क्योंकि इनकी जन्म मृत्यु होती है। इनके पिता कौन हैं? इनके पिता काल रूपी ब्रह्म हैं. पुण्य आत्माओं सत्संग के अंदर परमात्मा की याद दिलाई जाती है। आत्मा और परमात्मा की स्थिति बताई जाती है। कौन से कर्म अच्छे हैं? कौन से बुरे हैं? ये याद दिलाई जाती है. और आपको जो मिशन से जुड़ता है, जो भगवान चाहता है उसको सट्रिक्टली कहा जाता है कि ये पाप नहीं करोगे। ऐसा नहीं करोगे तो तुम सफल होगे, सच्चाई है ये. तो फिर वो आपके क्रियावान कर्म भी बदलवा दिए जाते हैं. जैसे कोई शराब पीता है. कोई चोरी करता है, कोई मिलावट करता है, कोई जारी करता है, कोई और बकवाद करता है. वो सब छुटवाई जाती है. वो क्रियावान कर्मों को भी चेंज कर दिया जाता है. प्रारब्ध के अंदर आपकी किस्मत में कोई जबरदस्त दुख है. उसको भी परमात्मा हल्का करके नाश कर देते हैं. परमेश्वर शरण में आने से आई टले बला और जे मस्तिक में जे भागे में सूली होवा कांटे में यदि आपके भाग्य में कहीं मृत्युदंड लिखा हो कहते हैं काँटा लाग के मनमाने ठोकर लाग के अंगूठा फूटकर जीवन बच जा। इतना हल्का करके परमात्मा वो कबीर परमेश्वर है। आपके प्रारब्ध में लिखे हुए पाप कर्म का विनाश कर देते हैं। और संत जो कर्म आपके वहाँ रखे हैं deposit उसका भी नाश कर देते हैं। क्या बताते हैं परमेश्वर अपनी महिमा आप ही बतावें आ करके। जब ही सतनाम ह्रदय दरो भयो पाप को नाश जैसे चिंगारी अग्नि की भाई पड़े पुराणे घास हमारे संचित कर्मों का ढेर लगा पड़ा है। आप जी को अब मिली है सत साधना जो सच्ची साधना करनी चाहिए थी. इस सत साधना को ना करके हम जितनी भी क्रियाएं करते थे वो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमानाचना था। वो भगवान के विधान के विपरीत था। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय नंबर सोलह के श्लोक नंबर तेईस में। लिखा कि अर्जुन शास्त्र विधि को त्याग कर जो मनमाना आचरण करते हैं। अर्थात मनमानी पूजाएं करते हैं शास्त्र जो शास्त्र अनुकूल नहीं है। तो उनकी ना तो गति होती है। और ना ही उनको कोई सुख होता है। और ना ही उनको कोई सिद्धि प्राप्त होती है। अर्थात useless और इन तीन कामों के लिए ही हम भगवान की भक्ति करते हैं। और वही उन साधनाओं से कोई लाभ नहीं होता जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं। तो उन क्रियाओं से हमें पुण्य बना नहीं भक्ति धन जुड़ा नहीं और जो साधना हम करते थे शास्त्र विधि को त्याग कर उससे पुण्य के स्थान पर पाप बनते रहे हम जिस लोक में रह रहे हैं ये काल का लोक है. यहाँ सुख नहीं या तो सारा निर्दयी कार्य है. इस इस भगवान का क्योंकि जिसका नाम काल है. जो है ही कसाई तो वहाँ सुख कैसे हो सकता है प्राणी को? अब इसने ये खुद कहता है गीता जी ध्याय नंबर ग्यारह के श्लोक नंबर बत्तीस में श्रीमद भगवत गीता में. कि अर्जुन मैं काल हूँ. और सबको नष्ट करने के लिए परिवर्त हुआ हूँ. अर्जुन ग्यारवें अध्याय के इक्कीसवें श्लोक में कह रहा है कि हे भगवान आप तो देवताओं को भी खा रहे हो आप तो ऋषियों के भी खा रहे हो और इस ऋषियों का समुदाय आपके आगे हाथ जोड़ रहा है मंगल हो मंगल हो बकचोद बख्श दो आप तो इनको भी खा रहे हो ये कहता है मैं तो काल हूँ भाई मैं ना छोडू किसे ना और तू ना युद्ध करेगा तो भी मारूँगा इनको ये तो मार रखे है मैंने तो पुण्य आत्माओं जो खुद मैं काल हूँ और उसको हम भगवान मान रहे हैं। हम तो सांप पूज रहे थे सर्प। अब श्री कृष्ण काल नहीं थे। श्री कृष्ण जी ने इस गीता के ज्ञान से पहले अपने आप को कभी काल नहीं कहा। और उसके बाद कभी अपने आप को काल नहीं कहा. ये तो काल जो है ये इक्कीस ब्रह्मांड का स्वामी है. और ब्रह्मा, विष्णु, महेश का युग पिता है. ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी की, दुर्गा माता है. और ये इसको श्राप लगा हुआ ब्रह्म को. इसको अलकाल कहो, चाहे ब्रह्म कहो, ये काल रूपी ब्रह्म कहलाता है। तो उस श्रापवश इसने एक लाख मानव शरीर धारी प्राणी नित आहार करना पड़ता है। और उसके लिए हमें यहाँ रोक रखा है इसने. अब जैसे कसाई बकरे पालता है। उन बकरों को सुविधाएं तो देता है वो। जैसे एक चारों तरफ से उनका बाढ़ बना दी कोई हिंसक पक्षी, पशु और ना खा जाए उनको। और चिरागा बनवा दिया उनके लिए घास-पूस डे झाड़ू और खूब उत्पन्न हो गए। एक तालाब बनवा दिया। एक shed डलवा दिया। घास-फूस का यानी झोंपड़ी। सर्दी लगे तो उसमें आ जाएं, वर्षा आवे तो उसके नीचे खड़े हो जाएं। और चारा खूब बढ़िया उनके लिए उपस्थित होता है। अब वो बकरे ये सोचते हैं कि हमारा जो मालिक है कितना अच्छा है. कैसी सुविधाएं हमें दे रखी हैं. घास दे रखा है खाने को. तरागा दे रखे हैं. और तालाब बनवा रखा है. अब उन बकरों की इतनी ही बुद्धि काम करती है लेकिन वो उस समय को भूल जाते हैं जब आता है कहीं से उसको ऑर्डर भी बकरों का दस का बकरियों का तो वो क्या करता है जा करके उनसे ले के डंडा और छांट लेता है मोटे-मोटे। अब उसमें किसी का बेटा मरो, चाहे किसी की बेटी कटो, चाहे माँ कटो, चाहे बाप मरो. वो ना देखता है किसका बेटा है, किसकी माँ है, इसकी माँ का क्या हाल होगा, रोएगी. इसका इसका बच्चे रोएंगे. तो वो तो उनको निकाल लाता है. वहाँ नहीं सोचता उसके मन में भी ना आती है बातें. उसने तो छांटने हैं मोटे-मोटे. और जा के कढ़ीच करवा देता है, कटवा देता है. तो ये हालत आप जी की हमारी यहाँ पर हो रही है। आप देखते हो दुर्घटना में परिवार के परिवार नाश हो जाता है। वैसे किसी आपदा में जैसे भूकंप आ गया वहां पर क्षेत्र का क्षेत्र नष्ट हो जाता है किसी परिवार के चार मुर्गे, पांच मत, किसी के छह मदद, चार, तीन मर गए हं कुछ बालक बचे किसी का होता है बाप बच गया. तो ये स्थिति हमारी यहाँ पर है. जैसे वो कसाई के बकरों की होती है. और हम ये सोचते हैं देखो कितना अच्छा भगवान है, कितनी अच्छी पृथ्वी दे रखी है, इस पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फल-फ्रूट हैं। काजू, किशमिश, सेब, संतरे, कभी झरने बह रहे हैं, बढ़िया दरिया बह रही है। नीचे जल है, बहुत अच्छा वातावरण है। हैं, और हम संतानों उत्पत्ति करते हैं और खाता वो है। लेकिन हम सोच नहीं पाए कि ये हो क्या रहा है? ये क्या हो रहा है हमारे साथ? क्योंकि हमारी बुद्धि इतनी कमजोर बना दी इसने और ऐसा शरीर में हमें फिट कर दिया कि हम ज्यादा सोच नहीं सकते इसमें कभी कुछ हो रहा है कभी कोई बीमारी का टेंशन सौ प्रकार की समस्या इसके अंदर तो ये ज्ञान भगवान ने आ के बताया। कि तुम यहाँ इस काल के लोक में रह रहे हो। और यहाँ तुम सुख खोज रहे हो तो जो प्रसंग चल रहा है कि ये पाप कर्म का नाश नहीं कर सकते और ये खुद भी दंड भोगते हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पिता हैं ये काल भगवान और जो शास्त्र विधि को त्याग के मनमाना आचरण करते हैं. तो हम ऐसे लोक में रह रहे हैं कि उस शास्त्र अनुकूल साधना करेंगे तो कुछ पुण्य तो हो जाएंगे. लेकिन पाप भी parallel होंगे तो वो अलग से लिखे जाते हैं जब तक हम परम पूज्य कबीर देव परमेश्वर की शरण में नहीं आते। और वो भी परम संत के माध्यम से नकली संतों से भी परमात्मा से connect नहीं हो सकोगे। चाहे वो कबीरपंथी भी कहलाते हैं। क्योंकि उनके पास वो मंत्र नहीं है। जिससे परमात्मा हमें लाभ दे सकता है. अब जैसे कोई घंटे झंडी काटे तो कोई proper way थोड़े ही है वो। वो तो बकवाद है। झांडी काटनी है तो तीखा कोहाड़ा चाहिए। कट्टा ही कट कर दे एक घंटे में साफ़। और उस दस दिन ते ही कंडे मोर हो ले। तो साधन ठीक हो परमात्मा के पाने का परमात्मा मिलेंगे। तो प्रश्न चल रहा है कि जिस लोक में हम रह रहे हैं। ये ऐसे निर्दयी का लोक है। आप यहाँ अपने पेट के लिए जा रहे हो जाना पड़ता है। रस्ते में कीड़ी, मकौड़ी, ना जाने कितने जीव-जंतु आपके पैरों के नीचे कुचले जाते हैं। और ये पता भी होता है और फिर भी नहीं बचा जा सकता हमसे। परमात्मा कहते हैं पृथ्वी ऊपर और करोड़ जीव एक दिन में मारे अब कहने का भाव ये है कि जो हम साधना करते थे शास्त्र विधि को त्याग के उनसे पुण्य तो कोई बना नहीं था क्योंकि वो शास्त्र विरुद्ध होगी. और पाप अपने आप बने थे. जैसे एक एकड़ जमीन है यानी कोई दो-चार एकड़ जमीन है। यदि उस जमीन से हम कुछ लाभ लेना चाहते हैं जैसे कनक उगाना चाहते हैं, गेहूं, चना, बाजरा, ज्वार कोई भी फसल हम बनाना चाहते हैं तो उसके लिए हमने एक विशेष प्रयत्न करना पड़ेगा, वो घास पहले वाला काटना पड़ेगा, उसमें तो कोई झाड़ बोझड़े उग गए हैं, वो काट-काट के वार करने पड़ेंगे। और फिर हल से ट्रैक्टर से यानी परिश्रम करना पड़ेगा और पैसे लगाने पड़ेंगे। आइए अब हम उन श्रद्धालुओं के अनुभव जानते हैं। जो जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल महाराज जी से दीक्षा प्राप्त कर चुके हैं तथा उनके द्वारा बताए गए भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं। सर नमस्कार। जी नमस्कार। सर क्या नाम है आपका? जी मेरा नाम सत्येंद्र प्रजापति है। सत्येंद्र जी कहाँ से आए हैं आप? जी मेरा गाँव दफ्तरा तहसील गुन्नौर डिस्ट्रिक्ट संभल उत्तर प्रदेश से हूँ जी सर संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने से पहले आप क्या भक्ति साधना करते थे? सर संत रामपाल जी जी से नाम दीक्षा लेने से पहले जो समाज में जो पारंपरिक साधनाएँ होती हैं उसी को किए जा रहे थे और सबसे हमारे जो आज पूरे ah परिवार में और ये सभी सबसे सर्वप्रथम हम Nanak साहिब जी की पूजा किया करते थे उसके साथ साथ जो भी साधनाएँ थी जन्माष्टमी आ गयी तो Krishna जी को मनाया करते थे नौ दुर्गा व्रत रहा करते थे तो शिव जी को मनन लिया करते थे ऐसे करके हम ये सभी साधना कर रहे थे. सर जैसा कि आपने बताया कि आप हिंदू धर्म में प्रचलित सभी प्रकार की पूजा करते थे. तो सर जब आप पारंपरिक पूजाएं सभी प्रकार की कर ही रहे थे तो फिर आपने संत रामपाल जी महाराज जी की शरण क्यों ली? जब ये सभी साधनाएं कर ही रहे थे तो इनसे हमारे को कोई भी लाभ नहीं हो रहा था. और हानि पर हानि ही हो रही थी. और मेरे को ये विश्वास नहीं हो रहा था कि भाई हम इतनी साधना कर रहे हैं. इन सभी साधनाओं को करते-करते. हमारे को भगवान से जो मिलने वाला लाभ है वो क्यों नहीं मिल पा रहा है? बड़ा दुखी हो रहे थे और इन सभी देवी-देवताओं को, नानक साहब जी को बड़े हृदय से पुकारा करते थे कि हे भगवान अगर आप वास्तविक आप भगवान हो तो वो हमारे को सुख दो, हमारे शरीर में सुख दो, हमारे हमारे को मतलब हर एक प्रथा प्रकार से सुख दो, मगर ऐसा कुछ हो नहीं रहा था. इन सभी साधनाओं को करके हमारे को ऐसा कुछ लाभ मिल नहीं रहा था. सर जैसा कि आपने बताया कि जो पारंपरिक पूजाएं आप कर रहे थे. उनसे आपको कोई लाभ नहीं मिला. तो हमारा आपसे ये सवाल है कि जब आपको उन साधनाओं को करने से कोई लाभ नहीं मिला. फिर आप संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में क्यों गए? हम एक बार पूना गिरी गए थे, पूर्णागिरी जैसे वहाँ पर जो श्रद्धालु होते हैं, जिस तरीके से जो कर रहे थे, उसी तरह तरीके से हम भी किए जा रहे थे। जब वहाँ घूमने के बाद में जो हम ट्रेन में आकर के बैठ गए तो वहाँ एक भगत संत रामपाल जी महाराज का शिष्य उन्होंने मेरे को दस रुपए की एक ज्ञान गंगा पुस्तक दी और वो सभी ले रहे थे उस को तो मैंने भी इस ah ले लिया कि भाई सभी ले रहे है भाई आप भी ले लो तो मैंने एक पुस्तक को दस रूपए में ले लिया वहाँ से और ला करके घर पे ला करके वो पुस्तक रख दी और दास एक ah electrician मिस्त्री है तो वहाँ दुकान पे काम करते करते अगर मेरे से कोई गलती हो जाती थी तो मेरा मेरे जो बड़े भाई है वो मेरे को पीटा पीट दिया करते थे तो मैं घर पे आ करके और नाराज हो करके घर पे पहुँच जाया करता था तो वहाँ पर मेरे मुँह में गुटखा भरा रहता था ये सारे विषय किया करता था मैं तो अंदर से ही प्रेरणा होती थी कि भई तेरे घर में एक पुस्तक रखी है उसको पढ़ ले तो उस पुस्तक को मैं उठा करके पढ़ने लग जाता फिर मेरे अंदर प्रेरणा होती थी कि भाई गुटखा साफ कर ले तो मैं उसको गुटखा साफ करता तो माँ कहती थी भई तू तो अब बहुत बड़ा भगत जी बन गया अभी तो गुटका खा रहा था और अभी से तूने निकाल दिया पुस्तक पढ़ने लग गया तो ऐसा कुछ करते करते मेरे को ऐसे जो भाई मेरी पिटाई करते थे तो मैं बिलकुल भूल जाता था वो पुस्तक मुझे बिलकुल शांत कर देती और फिर दूसरे दिन ही उठाकर के अपनी दुकान पे चला जाता था और भूल जाता था कि भाई ने मेरी पिटाई की है. सर ऐसी कौन सी पुस्तक थी वो जिसको पढ़ने के बाद आपकी मानसिक परेशानी दूर हो जाती थी. मन को शांति मिलती थी. सर उस पुस्तक का नाम क्या है? जी उस पुस्तक का नाम ज्ञान गंगा है जी. उस पुस्तक को पढ़ने से वह पुस्तक पढ़ने से मेरे को पूरी तरह से शांति मिल जाती थी. और जो अंदर विकार उत्पन्न हुआ करते थे वो बिल्कुल सारे खत्म हो जाया करते थे. उस पुस्तक को पढ़ने से मतलब ज्ञान समझा और ज्ञान समझने के बाद में सतगुरु देव जी से नाम दीक्षा ली। सर संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद क्या आपको कोई लाभ मिला? क्योंकि हम जिस भी संत रामपाल जी महाराज जी के अनुयायी से मिलते हैं वो बताते हैं कि उनको नाम दीक्षा लेने के बाद अनेकों लाभ मिले। क्या आपको भी कोई लाभ मिला? मेरे को ये सबसे बड़ा लाभ ये मिला मेरी शादी को पाँच साल हो गए थे। और पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी तो संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करके भक्ति करने से मुझे दो बेटियां एक बेटा परमात्मा ने इस दास को दिए। एक छोटी बेटी जो है दूसरे नंबर की जो बेटी है वो खेलते-खेलते घर में खेल रही थी तो अह अंदर प्रवेश करते ही घर में वहाँ हमने एक प्रेस या हीटर लगाने के लिए एक बोर्ड लगा रखा है। तो वहाँ पर उस गुड़िया ने दोनों उंगली अपनी उस पलक के अंदर डाल दी और वह बेटी अह तड़प-तड़प के वह घर में भी मर गई। तो मेरी पत्नी बाहर काम कर रही थी तो वो किसी कारण काम के लिए अंदर गई घर में तो उसने देखा कि भाई बेटी खत्म हो गई है। और उसने संत रामपाल जी महाराज को याद किया और उसने कहा संत रामपाल जी महाराज परमात्मा अगर आज ये बेटी **** **** तो आपसे मेरे पति का विश्वास छूट जाएगा और जो गाँव के अंदर जो भगत है वह भी आपसे विमुख हो जाएंगे इसलिए परमात्मा और जो मेरा बड़ा भाई है जेठ वो भी हमारे को जीने नहीं देगा कि तुम्हारे गुरु जी भगवान थे तो अपने गुरुजी ने जिंदा क्यों ना करी? तो इतना कहते उसने अपनी उस गुड़िया को उठाकर के जहाँ पर सतगुरु देव जी का प्रणाम स्थल बना रखा है वहाँ पर ले जा करके उसने उसको चरणामृत दिया तो कुछ क्षणवाद वह बेटी वो उठ के खड़ी हो गयी और गुरजी की झापड़ ah तस्वीर लगी हुई थी वहाँ पर इशारा करके कहने लगी कि बाबा ने मुझे बचा लिया बाबा गुरूजी की तरफ नसबीर के सामने हाथ उठाकर के कह रही थी बाबा ने मुझे बचा लिया और जी दास के साथ बहुत accident भी हुआ है। परमात्मा ने उस एक्सीडेंट को भी बहुत हल्के में ही टाल दिया है। एक बार हम अपनी बाइक से आ रहे थे तो सामने बिल्कुल रास्ता खाली था। एक चौराहा था नरेनी चौराहा तो वहां पर हम बिल्कुल रास्ता साफ नजर आ रहा था तो हमने सोचा कि शायद निकल जाएंगे। फिर एक इत्तेफाक से एक रोडवेज आ गई रोडवेज निकलते-निकलते हमारी नब्बे की स्पीड पे बाइक थी तो रोडवेज के पिछले हिस्से में जाकर के लग गई। बहुत बड़ी टक्कर लगने के बावजूद भी रामपाल जी महाराज ने की दया से इस दास को वहाँ भी जीवनदान मिला. मोटरसाइकिल की सारी ये जो आगे का पहिया जो होता है वो सारा कुछ खत्म हो गया था. वहाँ पे हमारी मौत हो जानी थी. वहाँ पर भी संत रामपाल जी महाराज ने बड़ी दया करी. और इस दास को जीवनदान दिया. संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेने से पहले. मैं सभी विकार किया करता था. बीड़ी, सिगरेट, भांग, शराब, तंबाकू ये सारे विषण किया करता था. संत रामपाल जी से नाम उपदेश लेने के बाद में ये सारी बिलकुल छू मंतर होगी फिर उस दिन से आज तक मैंने कोई नशा नहीं किया है जी सर एक व्यक्ति के जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन कैसे आता है कि उनका सालों का नशा संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेते ही छूट जाता है सर क्या कारण है? संत रामपाल जी महाराज जो मंत्र देते हैं इन सभी भगवानों के उन मंत्रों में इतनी पावर है कि उन मंत्रों के जाप से ये अपने अपने आप ये सारे विकार दूर हो जाते हैं. फिर चाहकर के भी कोई व्यक्ति इन व्यसनों को दोबारा नहीं कर पाता. सर अगर कोई व्यक्ति आपकी तरह अभी भी इतना नशा करता है और वो अपना नशा चाहकर भी नहीं छोड़ पा रहा है. तो क्या वो भी आपकी तरह संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेगा. तो क्या उनका भी नशा छूट जाएगा? हाँ जी हंड्रेड वन परसेंट. कोई भी व्यक्ति कितना भी बड़ा नशेड़ी क्यों ना हो नशे की तो बात छोड़ो नाम दीक्षा लेने के बाद में. कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी कर्जे में डूब गया हो, चाहे कितना भी बड़ा नशेड़ी हो या किसी कोई भी कितनी भी बड़ी बीमारी क्यों ना हो संत रामपाल जी महाराज से नाम उपदेश लेकर भक्ति करने से सारे दुःख दूर हो जाते हैं और परमात्मा मोक्ष भी प्रदान करते हैं. सर भगत समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं आप? मैं भक्त समाज को यही संदेश देना चाहता हूँ कि आज समाज में जो अ तरह-तरह की जो साधनाएं कर रहे हैं उनसे कोई भी लाभ होने वाला नहीं है. एक बार संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान को समझें. उनसे ना और अपना कल्याण करवाएं. जी बहुत-बहुत धन्यवाद. नमस्कार जी. आप सुन रहे थे जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन। अधिक जानकारी के लिए visit कीजिए हमारी वेबसाइट डब्लू डब्लू डब्लू डॉट जगतगुरु रामपाल जी डॉट ओआरजी संत रामपाल जी महाराज जी के शुभ आशीर्वाद से पूरे विश्व भर में पाँच सौ से भी ज्यादा नाम दीक्षा केंद्र हैं जिन पर संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा ऑनलाइन निशुल्क नाम दीक्षा दी जा रही है। अपने नजदीकी नाम दीक्षा केंद्र का पता करने के लिए संपर्क करें। eight two two two, eight, eight, zero, five, four, one.
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