प्रचलित कथा के अनुसार देवर्षि नारद अज्ञात कुलशील होने पर भी देवर्षि पद तक पहुंच गये थे। बालक होते हुए भी उनके मन में चंचलता नहीं थी। नारद मुनिजनों की आज्ञा का पालन किया करते थे। नारद की सेवा से प्रभावित होकर मुनिगण उन पर अपनी कृपा रखने लगे।